सुभाष चन्द्र बोस जीवनी, जीवन परिचय, जन्म, मृत्यु, कविता, निबंध, फोटो, कहानी (Subhash Chandra Bose Biography, Death, Nara, Slogan, Speech, Quotes in Hindi)
सुभाष चंद्र बोस हमारे भारतीय इतिहास का ऐसा चेहरा है जिन्हें आज भी गर्व के साथ याद किया जाता है. ये स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी में से एक थे. उन्होंने भारत देश को आजाद करने के लिए बहुत कठिन परिश्रम किए. सुभाष चंद्र बोस जी उड़ीसा के बंगाली परिवार में जन्मे थे, और उनका परिवार सुखी और समृद्ध था. उन्होंने अपने पूरे जीवन को अपने देश के नाम कर दिया. क्योंकि उनको अपने देश से बहुत प्यार था. आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि सुभाष चंद्र जी का जीवन कैसा रहा ?
सुभाष चन्द्र बोस का परिचय (Subhash Chandra Bose Introduction)
परिचय बिंदु | परिचय |
पूरा नाम | नेताजी सुभाष चन्द्र बोस |
जन्म | 23 जनवरी 1897 |
जन्मस्थान | कटक (ओड़िसा) |
मृत्यु | 18 अगस्त 1945 |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जाती धर्म | बंगाली लोग,हिन्दू |
शिक्षा | 1919 बी०ए० (ओनर्स), 1920 आई.सी.एस.पारीक्षा उत्तीर्ण |
शिक्षा प्राप्ति | कलकत्ता विश्वविधालय |
पद | अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1938) |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1921-1940), फॉरवर्ड ब्लॉक (1939- 1940) |
माता – पिता | श्री जानकी नाथ बोस और प्रभावती देवी |
बच्चे | श्रीमति अनीता बोस फाक |
पत्नी | श्रीमति एमिली शेंकल |
सुभाष चंद्र की खास बातें (Subhash Chandra Bose Interesting Facts)
सुभाष चंद्र जी युवाओं के बीच काफी प्रभावशाली थे. नेता जी ने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष के दौरान भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) की स्थापना की और उसका नेतृत्व करके “नेताजी” की उपाधि प्राप्त की थी. हालांकि शुरुआत में ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ उन्होंने गठबंधन किया था. परंतु उनके अलग विचारधारा के वजह से उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था. जब दुनिया में द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा हिं तब उस दौरान नेताजी ही थे, जिन्होंने जर्मनी और जापानी सेना से मदद की गुहार की थी, ताकि भारत से अंग्रेजों को उखाड़ फेंका जा सके. परंतु 1945 में रहस्यमई तरीके से पता नहीं कहां चले गए जिसका पता लगाना उस समय लोगों के लिए बहुत कठिन हो गया था.
सुभाष चंद्र बोस का बचपन और प्रारंभिक जीवन (Subhash Chandra Bose Childhood and Early Life)
सुभाष चन्द्र बोस जी के 14 भाई बहन में से 8 जो थे वे भाई थे ओर बाकि की 6 बहनें थी, और इनमें से वे अपने माता पिता की नौवीं संतान थे. नेता जी के पिता जानकीनाथ बोस कटक में एक सफल वकील थे, और उन्हें “राय बहादुर” की उपाधि मिली थी. बाद में उनके पिताजी बंगाल विधान परिषद सदस्य बने.
सुभाष चंद्र बोस बहुत ही अच्छे विद्यार्थी थे. वह पढ़ाई में बहुत ही तेज थे. उन्होंने फिलोसोफी विषय से बी .ए . की पढ़ाई कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से की थी. सुभाष जी स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से गहरे प्रभावित हुए थे और एक छात्र के रूप में देशभक्ति के लिए जाने जाते थे. सुभाष चंद्र बोस जी के पिता चाहते थे कि वे एक सिविल सेवक बने और इसलिए उन्हें भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए इंग्लैंड भेजा. उन्होंने अंग्रेजी विषय में हाई स्कोर करके वहां पर अपना चौथा स्थान प्राप्त किया. परंतु 1921 में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए वह प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया और भारत लौट आए. दिसंबर 1921 में बॉस को प्रिंस ऑफ वेल्स की भारत यात्रा का बहिष्कार किया और उनके सभी समारोहों को होने नहीं दिया जिसकी वजह से उनको गिरफ्तार करके कैद कर दिया गया.
सुभाष चन्द्र बोस की व्यक्तिगत जानकारी (Subhash Chandra Bose Personal Life)
जब नेताजी बर्लिन में रह रहे थे तब उन्हें एमिली शेंकल से प्यार हो गया, जो आस्ट्रेलिया मूल की थी. सुभाष जी और एमिली की शादी 1937 में एक गुप्त हिंदू समारोह में हुई थी और एमिली ने 1942 में एक बेटी अनीता को जन्म दिया था. अपनी बेटी के जन्म के कुछ समय बाद सुभाष जी 1993 में जर्मनी से भारत वापस आ गए.
सुभाष चन्द्र बोस का राजनीतिक करियर (Subhash Chandra Bose Political Career)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबंध सुभाष चंद्र बोस ने शुरुआत में कोलकाता में सक्रिय कांग्रेस के सदस्य चितरंजन दास के नेतृत्व में काम किया. चितरंजन दास जी ने मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी को छोड़ा और 1922 में “स्वराज” पार्टी की स्थापना की. सुभाष जी ने चितरंजन दास जी को अपना राजनीतिक गुरु माना. शुरू में सुभाष जी ने “स्वराज” हिंदी समाचार पत्र की शुरुआत की, दास जी के समाचार पत्र “फारवर्ड” का संपादन किया और मेहर के रूप में दास के कार्यकाल में कोलकाता नगर निगम के सीईओ के रूप में काम किया. चितरंजन दास जी राष्ट्रीय राजनीति के कार्य में व्यस्त थे तब सुभाष जी ने उनकी गैरमौजूदगी में छात्रों युवाओं और कोलकाता के मजदूरों को आजादी के लिए जागरूक किया. उन्होंने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी और वह जल्द से जल्द भारत को आजाद देश के रूप में देखना चाहते थे.
सुभाष चन्द्र बोस जी का कांग्रेस में विवाद (Subhash Chandra Bose vs Congress Party)
साल 1928 में कांग्रेस के गुवाहाटी अधिवेशन के समय कांग्रेस के पुराने और नए सदस्यों के बीच विवाद का मामला सामने आया. सभी युवा नेता बिना किसी समझौते के पूर्ण स्वशासन चाहते थे जबकि वरिष्ठ नेता ब्रिटिश शासन द्वारा भारत अधिराज्य का दर्जा मानकर कार्य करना चाहते थे. शांत स्वभाव के गांधी और आक्रमक सुभाष चंद्र बोस जी के बीच बेमेल के कारण सुभाष जी ने वर्ष 1939 में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने उसी वर्ष “फॉरवर्ड ब्लॉक” का गठन किया. सुभाष जी ने अपने पत्रों में अक्सर अंग्रेजों के प्रति अपनी नापसंद की आवाज उठाई.
आजाद हिंद फौज का इतिहास (History of Aajad Hind Fauz)
आजाद हिंद फौज के इतिहास के बारे में बात करें तो यह सबसे पहले राजा महेंद्र प्रताप सिंह 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में बनाई थी. इस सेना के निर्माण का मुख्य उद्देश्य केवल अंग्रेजों से लड़ कर भारत को मुक्त कराने के लिए था. यह “आजाद हिंद सरकार” की सेना थी. रासबिहारी बोस जी ने जापानियों की सहायता से दक्षिण पूर्वी एशिया से जापान में करीब 40000 भारतीय स्त्री और पुरुष एकत्रित किया था और उन्हें प्रशिक्षित करके सेना का निर्माण किया. उस प्रतिष्ठित सेना का नाम “आजाद हिंद फौज” रखा. कुछ समय बाद उन्होंने सुभाष चंद्र बोस जी को आजाद हिंद का कमांडर बनाकर इसकी कमान उनको सौंप दी.
आजाद हिंद फौज का निर्माण कैसे हुआ (How to Create Aajad Hind Fauz)
द्वितीय वर्ष के समय सुभाष जी ने कांग्रेस द्वारा ब्रिटिश को समर्थन दिए जाने का विरोध किया. उसी समय सुभाष जी ने थाना के सभी भारतीयों को एकत्रित करके एक जन आंदोलन की शुरुआत की. उनके जन आंदोलन की पुकार थी “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”. अंग्रेजों को जैसे ही खबर लगी की सुभाष चंद्र बोस बहुत बड़ा आंदोलन कर रहे हैं, जिसके वजह से उनका अस्तित्व ही खत्म हो सकता है. इसलिए अंग्रेजों ने उनको कैद कर लिया. जेल में ही सुभाष चंद्र बोस ने दो हफ्तों तक खाना नहीं खाया और वहां से ही आंदोलन करते रहे. भूखा रहने से जब उनकी तबीयत खराब होने लगी तो ब्रिटिश अधिकारियों ने हिंसक प्रतिक्रियाओं के होने के डर से उन्हें रिहा कर दिया. लेकिन उनको नजरबंद करके रखा गया. सुभाष चंद्र जी ने 1941 में छुप कर प्लान बनाया और बर्लिन जाने के लिए सोचा. वे पेशावर से होते हुए जर्मनी पहुंचे. जर्मन लोगों ने सुभाष चंद्र बोस जी का संपूर्ण रूप से समर्थन किया और सुभाष जी ने जापान के प्रति निष्ठा भी प्राप्त की. सुभाष जी जापान पहुंचे जहां उन्होंने सिंगापुर और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रों से भर्ती हुए 40,000 से ज्यादा सैनिकों की कमान संभाली. जिसने 1943 में दक्षिण एशिया में अपनी आर्मी को तैयार किया इसका नाम उन्होंने दिया “इंडियन नेशनल आर्मी” (NIA) रखा.
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु (Subhash Chandra Bose Death)
आजाद हिंद फौज की असफलता के कारण निराश होकर नेता जी ने रूस यात्रा की योजना बनाई. परंतु 18 अगस्त 1945 को ताइवान यात्रा के दौरान ताइवान में उनका प्लेन क्रैश हो गया जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई. परंतु प्लेन क्रैश के घटना के बाद उनका शव तक बरामद नहीं हुआ और उस घटना का कोई ठोस सबूत भी नहीं मिला था. इसीलिए सुभाष चंद्र बोस जी की मौत आज भी विवाद में है और भारत के अब तक के इतिहास में यह सबसे बड़ा रहस्य बना हुआ है.
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