भारतीय नृत्य और भारत का शास्त्रीय और लोक नृत्य ( Classical & Folk Dances of India in hindi)
भारतीय नृत्य जब हम यह शब्द सुनते है तो हम अपने दिमाग में किसी एक प्रकार के नृत्य के बारे में नहीं सोच सकते. अगर हम पुराने जमाने में किए जाने वाले नृत्य की बात करें, तो इसमें इंडियन क्लासिकल मुख्य डांस फॉर्म है, परंतु इसके अंदर भी 8 तरह के नृत्य शामिल थे, जो की अलग-अलग भारतीय राज्यो की शैली थे. ये उस समय की बात है जब नृत्य एक साधना थी जब लोग नृत्य को ही अपनी आराधना समझते थे, जब लोग अपनी भक्ति को प्रकट करने के लिए भी नृत्य करते थे, जब भागवत, रामायण आदी कथाओ को भी नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया था. परंतु आज भारत में नृत्य का प्रारूप बदल चुका है, अब इंडियन क्लासिकल के अतिरिक्त भी कई डांस फॉर्म आ गए है, आज डांस का उद्देश बदलकर एंटर्टेंमेंट हो गया है. आज डांस के फॉर्म भी बदले है और डांस का स्तर भी, विभिन्न टीवी डांस शो के जरिये हम नए जमाने के डांस देखते आ रहें है. नए जमाने में कुछ दिनों की प्रैक्टिस के बाद अच्छे एंटरटैनिंग डांस तो तैयार किए जा सकते है परंतु इससे इंडियन क्लासिकल की बराबरी करना मुश्किल है, क्योंकि इंडियन क्लासिकल डांस फॉर्म कई वर्षो की मेहनत और उचित प्रशिक्षण से ही संभव है.
विभिन्न भारतीय डांस फॉर्म (Different Indian Dance Form) –
जैसा की हम पहले ही बात कर चुके है कि भारत में दो प्रमुख डांस फॉर्म होते है-
- भारतीय क्लासिकल डांस फॉर्म
- भारतीय फोक डांस फॉर्म
- भारतीय क्लासिकल डांस फॉर्म – भारतीय क्लासिकल के अंदर भी 8 तरह के डांस फॉर्म शामिल है जो कि निम्न है –
- भरतनाट्यम
- कत्थक
- कुचीपुड़ी
- ओडिसी
- कथकली
- सत्त्रिया
- मणिपुरी
- मोहिनीअट्टम
भरतनाट्यम – भरतनाट्यम एक बहुत ही प्रसिद्ध डांस फॉर्म है, इसके बारे में अधिकतर लोग जानते है और यह भारतीय राजी तमिलनाडू का डांस फॉर्म है. इस क्लासिकल डांस फॉर्म को पुराने भारतीय नृत्यांगनाओ और मंदिर में डांस करने वाले कलाकारो ने हमे दिया है. यह भारतीय डांस फॉर्म एक्स्प्रेशन, संगीत, बीट और डांस का समाहित रूप है. जब कलाकार इस डांस को करते है तो वे डार्क और आकर्षक दिखने वाले रंगो कि साडी पहनते है और इनमें भी काँचीपुरम सिल्क और बनारसी मुख्य होती है. इस डांस में कोई एक वाद्य यंत्र लाइव बजाया जाता है और उसके बीट पर कलाकार डांस करते है, इस डांस में कलाकार कि हस्तमुद्राएं बहुत महत्वपूर्ण होती है, कलाकार द्वारा इनका विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है.
कत्थक – कत्थक मुख्यतः उत्तर प्रदेश का मुख्य डांस फॉर्म है. कत्थक शब्द का आगमन कथाकार से हुआ है, इसमें भी एक कथाकार संगीत और अपने एक्स्प्रेश्न के जरिये कहानी कहता था धीरे धीरे इसमें कहानी कहते वक़्त डांस का उपयोग बढ़ता गया और इस प्रकार से कत्थक का जन्म हुआ. कत्थक की एक खासियत यह है की इसकी शुरुआत शांत और धीरे से होती है और फिर अंत तक आते आते ये एक फास्ट डांस में बादल जाता है. कत्थक डांस में पैरो के मूवमेंट पर विशेष ध्यान दिया जाता है और इसे करते वक़्त पैरो में मोटे-मोटे घुंघरू बंधे जाते है ताकि पैरो का मुवमेंट स्पष्ट रूप से सुनाई दे. इस डांस फॉर्म में भरतनाट्यम और कत्थकली की तरह कलाकार के कपड़ो पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता इसमें डांस और कलाकार के मुवमेंट खास होते है.
कुचीपुड़ी – कुचीपुड़ी मुख्यतः भारतीय राज्य आंध्रप्रदेश का मुख्य डांस फॉर्म है. इस डांस को मुख्य रूप से ब्राह्मणो द्वारा मंदिरों में परफोर्म किया जाता था. इस डांस की थीम भगवत पर आधारित होती है, जो मुख्य रूप से भगवान श्री कृष्ण के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है. इस भारतीय डांस की खासियत यह है कि कलाकार इसे पीतल कि थाली पर पैर रखकर और सिर पर कलश रखकर करते है. इस डांस फॉर्म को कलाकार अकेले तो परफोर्म करते ही है साथ ही में जब इसे पूरे ग्रूप द्वारा परफॉर्म किया जाता है तो इसका सौंदर्य कुछ और ही होता है.
ओडिसी – इस डांस फॉर्म के नाम से ही स्पष्ट है की यह एक भारतीय राज्य उड़ीसा का डांस फॉर्म है. यह भारतीय डांस फॉर्म भी भगवान श्री कृष्ण की स्टोरी पर आधारित होता है, जिसमें मुख्यरूप से गीतगोविंद की कहानियाँ कही जाती है. इस नृत्य का इजात भी मंदिरो से ही हुआ और बाद में इसे भी अन्य जगहो पर किया जाने लगा. इस डांस फॉर्म की अधिकतर चीजे भरतनाट्यम से मिलती जुलती है
कथकली – कथकली भी केरल का ही एक डांस फॉर्म है, इस भारतीय डांस की उत्पत्ति मंदिरो में हुई थी. इसमें मुख्यतः रामायण और महाभारत की कहानियों को परफोर्म किया जाता है. इस डांस फॉर्म में भी भरतनाट्यम की ही तरह लाइव वाद्य यंत्र होता है और साथ ही में इसमें एक संगीतकार भी होता है जो संगीत के माध्यम से कहानी कहता है. इस डांस को करते वक़्त कलाकार कभी अपने होठ नहीं खोलता मतलब वह डांस करते वक़्त लिपसिंग नहीं करता है, कलाकार को जो कुछ भी कहना होता है वह केवल अपने चेहरे के भावो से कहता है. इस डांस फॉर्म में कलाकार का मेकअप भी अलग होता है, जो चेहरे के रंग के द्वारा कलाकार के व्यक्तित्व को बताता है. इस डांस की एक खास बात यह भी है की इसे केवल और केवल खुले आसमान के नीचे परफोर्म किया जाता है.
सत्त्रिया – इस भारतीय डांस का मूल, भारत के असम राज्य को माना जाता है. इस भारतीय डांस फॉर्म का जनक आज से 500 साल पहले हुये संकरदेव को माना जाता है. इसे पहले केवल आदमियों द्वारा परफ़ोर्म किया जाता था परंतु अब इसे औरते भी परफ़ोर्म करती है. इस डांस को भी वाद्ययंत्र के साथ परफ़ोर्म किया जाता है और इसमे सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसकी सारी म्यूज़िकल कंपोज़ीशन संकरदेव ने खुद बनाई थी आउर आज भी उनही कंपोजीशन को फॉलो किया जाता है.
मणिपुरी – जैसा की नाम से ही स्पष्ट है की इस डांस का मूल भारतीय राज्य मणिपुर से हुआ है. इस डांस ही थीम भी कृष्ण और गोपियों की रासलीला ही होती है और इसी के इर्द-गिर्द इस डांस ही कहानी घूमती है. इस डांस में सबसे महत्वपूर्ण बात यह होती है कि इसमें बहुत ही शांत और आकर्षित हाथ और उँगलियों के मूवमेंट होते है. इस डांस में पैरो को भी बहुत धीरे से जमीन पर रखा जाता है ताकि उसकी आवाज न आए. इस डांस में पहने जाने वाला ड्रेस भी बहुत ही अलग होता है इसमें एक ड्रम के आकार का स्कर्ट नीचे की और कलाकार द्वारा पहना जाता है जिससे इस डांस में पैरो के तेज मूवमेंट संभव ही नहीं होते.
मोहिनीअट्टम – इस भारतीय क्लासिकल डांस का मूल केरल से है, और इसकी एक विशेषता यह भी है कि इसे केवल महिला कलाकार द्वारा ही परफोर्म किया जाता है. यह एक अकेला ऐसा डांस फॉर्म है जिसे पुरुष नहीं कर सकते. यह डांस फॉर्म भरतनाट्यम और कथकली दोनों का ही मिश्रित रूप है. इस डांस में कलाकार अपने एक्स्प्रेश्न के द्वारा लोगों को आकर्षित करते है.
- भारतीय फोक डांस फॉर्म –
फोक डांस वह डांस है जिसे कोई भी आम व्यक्ति कर सकता है, इसे करने के लिए क्लासिकल डांस कि तरह बहुत दिनों या सालो की ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं होती ना ही इसमें किसी विशेष तरह का मेकअप आवश्यक होता है. इसकी थीम और संगीत सिम्पल और लोकल होता है, इसमें क्लासिकल डांस की तरह किसी विशेष वाद्य यंत्र और संगीत की भी आवश्यकता नहीं होती. इस डांस को आप किसी भी खुशी के अवसर कर परफ़ोर्म कर सकते है. फोक डांस किसी भी स्थान विशेष की सभ्यता पर बेस्ड होते है, कई फोक डांस जैसे घूमर, भांगड़ा, गरबा, डँड़िया बहुत ज्यादा फ़ेमस है जिन्हे पूरे भारत में लोग बहुत ही उत्साह से करते है.
भारत के विभिन्न भागो में प्रचलित कुछ फोक डांस निम्न है –
- रासलीला, उत्तरप्रदेश – रासलीला एक बहुत ही पुराना डांस फॉर्म है, जिसका प्रारंभ भारत के उत्तर प्रदेश में स्थित ग्राम बृज से जाना जाता है. कहा जाता है कि जब बृज स्थित गोपियां जब रात्रि में श्री कृष्ण कि बासुरी कि आवाज सुनती थी तो वे अपने घर से जंगल कि और निकल जाती थी और रात भर भगवान कृष्ण के साथ रासलीला करती थी, तब ही से यह नृत्य किया जाता है. भारतीय क्लासिकल डांस फॉर्म कत्थक का उदय भी रासलीला के द्वारा ही माना जाता है. रासलीला मुख्यतः होली और भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के समय जन्माष्टमी पर परफ़ोर्म किया जाता है.
- गरबा, गुजरात – गरबा भारतीय राज्य गुजरात का सुप्रसिध्द डांस फॉर्म है. गुजरात के अलावा गरबा संपूर्ण भारत में भी बहुत फ़ेमस डांस फॉर्म बन चुका है. यह नृत्य जीवन में उत्सव का प्रतीक है, जिसे माँ दुर्गा के सम्मान में किया जाता है. गरबा सदैव एक ग्रुप में और विशेष वेषभूषा में किया जाता है. इस डांस को कुछ लोगो का समूह एक गोला बनाकर करता है, और अपनी आकर्षक वेषभूषा और नृत्य से लोगों का मन मोह लेता है.
- घूमर, राजस्थान – इस राजस्थानी नृत्य को औरतों द्वारा विभिन्न रंगो के घेरदार घागरे पहनकर किया जाता है. घूमर नृत्य देवी सरस्वती के सम्मान में किया जाता है. यह नृत्य देखने में बहुत ही अच्छा और मन मोह लेने वाला होता है इसलिए आज के समय में इसे विभिन्न फिल्मों में भी स्थान मिला है, जिसे दर्शको द्वारा खूब सराहा भी गया है.
- बीहू, असम – बीहू एक बहुत ही तेज और मन खुश कर देने वाला नृत्य है जिसे भारत के राज्य असम में किया जाता है. यह नृत्य असम के तीन प्रमुख कृषि त्योहारो के समय वहाँ के लड़के लड़कियों के द्वारा किया जाता है. यह नृत्य एक ड्रम कि थाप पर किया जाता है जिसका एक सिरा पतली लड़की के द्वारा और दूसरा सिरा हाथ से बजाया जाता है. बीहू मुख्यतः एक बहुत लंबा डांस होता है और इसमें पूरे डांस के दौरान गाने का लय, टेम्पो मूड, मूवमेंट आदि चीजें चेंज होती रहती है जो इस नृत्य को उत्साह से भरा हुआ और आकर्षक बनाती है.
- लावणी, महाराष्ट्र – लावणी को ढोलक कि थाप पर किया जाता है. यह मुख्य रूप से एक तेज डांस फॉर्म है जिसे अधिकतर औरतों द्वारा किया जाता है, इस डांस का महाराष्ट्र में लोक नृत्य के विकास में महत्वपूर्ण स्थान है. लावणी मुख्य रूप से दो प्रकार कि होती है एक फाड़ाची इसे मुख्यतः सार्वजनिक स्थानो पर और नाटकीय माहौल में किया जाता है और दूसरी बैथकची लावणी जिसे चुनिंदा दर्शको के बीच एक बंद जगह में किया जाता है. लावणी नृत्य को करते समय चटक रंगो की नवारी सारी पहनती है, जिसके साथ में वे अपने बालो को पक्के बांधकर जुड़ा बनाती है और खूबसूरत गहने पहनती है.
- मटकी नृत्य मध्य प्रदेश – मटकी डांस का उदय मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र से हुआ था. इस डांस को अकेली औरतों द्वारा विशेष उत्सव पर किया जाता है. इस नृत्य का प्रमुख आकर्षण यह है की इसे महिला द्वारा सिर पर मटका रखकर किया जाता है, मुख्य रूप से इसमें सिर पर एक से अधिक और कई बार तो दर्जनों मटके सर पर रखकर किया जाता है. इस नृत्य में कलाकार की रंगीन वेषभूषा और आकर्षक स्टेप्स इस डांस में चार चाँद लगा देती है.
- भांगड़ा, पंजाब – भांगड़ा इस नृत्य से शायद ही कोई अपरिचित हो, यह पंजाब राज्य का एक लोकप्रिय नृत्य है. पहले लोग इस नृत्य को फसलों की कटाई के वक़्त करते थे परंतु अब यह डांस पंजाब के अलावा भी पूरे देश में कई राज्यों में खुशी के अवसर पर किया जाता है. यह नृत्य युवाओं का पसंदीता नृत्य है जिसे भारत के अलावा भी अन्य कई देशो जैसे अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन आदि कई देशो में परफ़ोर्म किया जाता है.
- रौफ़्फ़, जम्मू कश्मीर – रौफ़्फ़ जम्मू कश्मीर का एक ट्रेडीशनल डांस फॉर्म है. इस नृत्य को औरतों के द्वारा विभिन्न त्योहारों पर किया जाता है. इस डांस को करते समय औरते दो लाइनों में खड़ी हो जाती है और एक दूसरे के कंधे में हाथ डालकर यह डांस करती है. इस डांस को सिम्पल पैरो के मूवमेंट द्वारा किया जाता है और इसे सुंदर काव्य गीतो पर किया जाता है.
- मयूर नृत्य उत्तर प्रदेश – इस डांस के द्वारा कलाकार मुख्य रूप से राधा और कृष्ण कि प्रेम कथा का वर्णन करते है. पौराणिक कथाओ के अनुसार जब भी राधा रानी का मन मयूर नृत्य देखने का होता था तो भगवान श्री कृष्ण मोर का रूप धर उनके सामने नृत्य करते थे तब ही से इस डांस का इजात हुआ. इस डांस को करते वक़्त कलाकार खुद भी मोर का रूप धरण करते है और मोर पंखो का इस्तेमाल अपने परिधान में करते है.
- नाटी, हिमाचल प्रदेश – नाटी भारत का एक प्रमुख लोक नृत्य है जिसका उदय मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला से माना जाता है. साल 2016 में इस नृत्य को सबसे बड़े लोक नृत्य के रूप में गीनीज़ बूक में स्थान मिला हुआ है. कुल्लू के अलावा चंडीगड़ और उत्तराखंड में भी इसी प्रकार का नृत्य किया जाता है. हिमाचली युवाओं द्वारा नाटी नृत्य को सात अलग-अलग रूप जैसे लाहौली नाटी, किन्नौरी, सिरमौरी, महासूवी और हिमाचली नाटी नृत्य आदि में किया जाता है. इस नृत्य को हिमाचल के लोकल न्यूयर सेलिब्रेशन के वक़्त किया जाता है.
इन प्रचलित लोक नृत्यों के अतिरिक्त भी कई ऐसे डांस है जो भारत के अतिरिक्त कई हिस्सों में किए जाते है. ये डांस मुख्य रूप से उस एरिया की लोकल सभ्यता को प्रदर्शित करते है, इनमें से कुछ डांस तो बहुत फ़ेमस होकर राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा हासिल कर चुके है परंतु कुछ अब भी उस पर्टिकुलर एरिया में किए जाते है. उपर बताए गए डांस फॉर्म के अलावा कुछ और प्रचलित लोक नृत्य राऊत नाचा छत्तीसगढ़, घुमरा उड़ीसा, पूली काली केरल, डोल्लू कुनीता कर्नाटक, वीरानाट्यम आंध्रा प्रदेश, छौ पश्चिम बंगाल आदि है. हो सकता है कि इनके अलावा भी अन्य कई लोक नृत्य हो भारत के कुछ इलाको में किए जाते है और उन्हे हम अपने आर्टिक्ल में जगह न दे पाये हो अगर आप भी ऐसे किसी नृत्य के बारे में जानते है तो आप हमे कमेंट बॉक्स में कमेंट के माशयम से बता सकते है.
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