किसानों द्वारा किया जाएगा ‘संसद चलो’ कार्यक्रम (Sansad Chalo Program in Hindi) (Farmers to March to Parliament)
प्रधानमंत्री ने हाल में ही किसान कानून को निरस्त करने का फैसला लिया है। गुरु पर्व के पावन अवसर पर घोषित किए गए इस फैसले पर देश भर से प्रतिक्रियाएं मिल रही है। राजनैतिक दलों से ले कर किसान नेताओं ने भी अपने विचार साझा किए हैं।पूरे देश में कानून के विरोध और समर्थन में अलग अलग दलीलें दी जा रही हैं। हाल में ही संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों ने 29 नवंबर को संसद तक मार्च करने का मन बनाया है। इसके अलावा और भी कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। तो आइए इस आर्टिकल के माध्यम से जाने किसानों द्वारा चलाए जानेवाले संसद चलो कार्यक्रम के बारे में।
‘संसद चलो’ कार्यक्रम कैसे होगा (Sansad Chalo Program in Hindi)
संयुक्त किसान मोर्चा की हाल में हुई मीटिंग से ये स्पष्ट है कि किसान आंदोलन खत्म नहीं होगा। किसान चाहते हैं कि सरकार उनकी अन्य मांगों को भी पूरी करे। संयुक्त किसान मोर्चा ने ये स्पष्ट किया है कि 29 नवंबर को किसान ट्रैक्टर्स के साथ संसद की ओर प्रस्थान करेंगे। हालाकि आने वाले कार्यक्रमों पर निर्णय 27 नवंबर को लिया जाएगा। किसानो को कृषि कानूनों के आधिकारिक रूप से खत्म होने का इंतजार है और इसके बाद ही आंदोलन के खत्म होने का निर्णय लिया जाएगा। इन सब के अलावा अपनी एमएसपी से जुड़ी मांगों के लिए भी किसान सरकार से कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान मजदूर संघर्ष दिवस मनाने की घोषणा की है। इस संबंध में आधिकारिक बयान सामने आया है। किसान मजदूर संघर्ष दिवस का पदार्पण करने के लिए सर छोटू राम की जयंती को चुना गया है जो कि 24 नवंबर को पड़ती है। सर छोटू राम को किसानों का ‘मसीहा’ माना जाता है। किसानों के प्रति उनके योगदान का स्मरण पूरा देश करता है।इस जयंती के बाद किसान 26 नवंबर को दिल्ली बॉर्डर तक मार्च करेंगे और 29 नवंबर को संसद की ओर कूच करेंगे।
कृषि कानून से जुड़ा मसला क्या था (Krishi Kanoon Case)
- पिछले वर्ष 17 दिसंबर ( 2020) को तीन कृषि कानून लाए गए थे।
- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक,2020 में सरकार का कहना था कि वो किसानों की उपज को उचित तरीके से बिकवाने के लिए विकल्प में इजाफा करना चाहती है।
- सरकार का ये कानून किसानों को एपीएमसी मंडियों के अलावा भी ऊंचे दामों पर उपज बेचने के अवसर देने वाला था।
- इसके अंतर्गत कॉरपोरेट खरीदारों को भी छूट दी गई थी और वो बगैर रजिस्ट्रेशन और कानूनी शिकंजे के किसानों की उपज को खरीद सकते थे।
- किसानों को ये डर था कि ऐसे कानूनों के व्यवहार में आने से एपीएमसी मंडियों का महत्व खत्म हो जाएगा।
- इस वर्ष किसानों को आंदोलन करते हुए एक वर्ष पूरा हो जाएगा।
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