मठ परम्परा क्या हैं इतिहास नाम (Aadi Shankaracharya Four Math Name)

मठ परम्परा क्या हैं इतिहास नाम (आदि शंकराचार्य, कौन है, दशनामी संप्रदाय स्थापना, पद की शुरुआत, चार मठ, मठ मतलब, ज्योर्तिमठ, श्रृंगेरी मठ, गोवर्धन मठ, शारदा मठ, प्रथम शंकराचार्य, शंकर चार बनने की योग्यता, श्रृंगेरी मठ कहां है,मठ परम्परा क्या हैं , इतिहास, गोवर्धन मठ कहां है, शारदा मठ कहां है, जोशीमठ कहां है, मठों की संख्या कितनी है) Four Math History (Aadi Shankaracharya, pad, four math, meaning of math, Jyoti math, Sringeri math, Sharda Math, Govardhan math)

जिस प्रकार से क्रिश्चियन मजहब को मानने वाले लोग पॉप का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार से हिंदू सनातन धर्म को मानने वाले लोग आदि शंकराचार्य जी का सम्मान करते हैं। फिलहाल आदि शंकराचार्य जी जीवित नहीं है परंतु जो व्यक्ति शंकराचार्य के पद पर विराजमान हैं उनका स्थान हिंदू धर्म में काफी ऊंचा है।

हिंदू धर्म में शंकराचार्य के पद की परंपरा आदि शंकराचार्य जी के द्वारा ही शुरू की गई थी जो आज तक चली आ रही है। आदि शंकराचार्य ने अपने जीवित रहते हुए देश में चार मठों की स्थापना अलग-अलग स्थानों पर की थी। जहां शंकराचार्य के पद पर आज अलग-अलग व्यक्ति विराजमान हैं। आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि आदि शंकराचार्य कौन है और शंकराचार्य की परंपरा कब शुरू हुई।Four Math History Name

आदि शंकराचार्य कौन है? (Who is Aadi shankarcharya)

आदि शंकराचार्य जी के जन्म के पश्चात् इनका नाम शंकर रखा गया था। इनके बारे में कहा जाता है कि इनका जन्म ईसवी सन 788 में हुआ था और उनकी मृत्यु ईस्वी सन् 820 में हो गई थी। आदि शंकराचार्य को हिंदू धर्म का बहुत ही प्रसिद्ध प्रचारक कहा जाता था।

इन्हें वेद, उपनिषद की अच्छी जानकारी थी साथ ही यह रामायण और महाभारत को भी कंठस्थ करके रखते थे।

इनका सबसे मुख्य काम था भारत देश में चार पीठ की स्थापना करवाना। शंकराचार्य जी के द्वारा मठ की स्थापना करवाने के साथ ही साथ देश भर में तकरीबन 12 ज्योतिर्लिंग की भी स्थापना की गई थी।

इन्हें अद्वैत परंपरा का प्रवर्तक कहते हैं। इनके द्वारा विभिन्न प्रकार के ग्रंथों की रचना की गई थी। हालांकि इनका दर्शन गीता, ब्रह्म सूत्र और उपनिषद के ऊपर लिखे गए भाष्यों में ही प्राप्त होते हैं।

हिंदू धर्म ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि आदि शंकराचार्य को शिव जी का अवतार कहा गया है। अपने जीवन काल के दरमियान शंकराचार्य जी के द्वारा वैसे तो पूरे भारत देश के अलग-अलग इलाकों की यात्रा की गई परंतु उन्होंने अपना सबसे अधिक समय उत्तर भारत में ही व्यतीत किया।

आदि शंकराचार्य द्वारा दशनामी संप्रदाय की स्थापना

शंकराचार्य ने ही दशनामी संप्रदाय की भी स्थापना की थी, जिसके अंतर्गत गिरी, पर्वत और सागर शामिल है जिनके ऋषि भृगु थे। इसके अलावा पूरी, भारती और सरस्वती शामिल है। जिनके ऋषि शांडिल्य थे, वहीं वन और अरण्य के ऋषि कश्यप थे तथा तीर्थ और आश्रम के ऋषि अवगत थे।

शंकराचार्य के पद की शुरुआत कब हुई?

ऐसा कहा जाता है कि शंकराचार्य के पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य से मानी जाती है जो कि हिंदू धर्म के बहुत ही प्रसिद्ध धर्म गुरु और दार्शनिक थे।

आदि शंकराचार्य जी के द्वारा सनातन धर्म को आगे बढ़ाने के उद्देश्य के साथ भारत के अलग-अलग स्थानों पर चार मठ की स्थापना की गई थी और उन्ही चारों मठ के प्रमुख को शंकराचार्य का नाम दिया गया।

चारों मठ की स्थापना करने के बाद शंकराचार्य जी के द्वारा अपने मुख्य चार शिष्यों को उन चार मठों पर बैठाया गया और तब से ही शंकराचार्य जी के द्वारा बनाए गए चारों मठ में शंकराचार्य के पद की परंपरा चलती आ रही है।

आदि शंकराचार्य जी के द्वारा जिन मठों का निर्माण किया गया था वह सभी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है साथ ही जितने भी चार मठ है उनका एक स्पेशल महावाक्य भी है।

मठ का मतलब क्या है? (Meaning of Math)

मठ हिंदू धर्म का एक ऐसा संस्थान होता है जहां पर गुरु भी मौजूद होते हैं साथ ही उनके शिष्य भी मौजूद होते हैं। इस जगह पर शिष्य अपने गुरु से उपदेश और शिक्षा ग्रहण करते हैं।

किसी किसी जगह पर पीठ को मठ कहा जाता है। यहां पर जो गुरु बैठते हैं, वह किसी धर्म के मुख्य गुरु में गिने जाते हैं।

मठ में धार्मिक शिक्षा देने के अलावा साहित्य से संबंधित काम भी किए जाते हैं। बौद्ध मजहब के जो मठ होते हैं उन्हें विहार कहा जाता है, वही क्रिश्चियन मजहब में मठ को मोनेटरी अथवा प्रायरी या फिर चार्टरहाउस कहते हैं।

कौन से सन्यासी किस मठ से संबंधित हैं?

हमारे भारत देश में जितने भी सन्यासी है वह किसी न किसी मठ के साथ जुड़े हुए हैं। जब किसी व्यक्ति के द्वारा सन्यास लिया जाता है और वह किसी मठ से जुड़ जाता है।

तो उसके नाम के आगे पीछे कुछ ऐसे शब्द होते हैं जिसके द्वारा यह पता चल जाता है कि वह व्यक्ति किसी मठ के साथ जुड़ा हुआ है। सभी मठ के द्वारा अलग-अलग वेद का प्रचार किया जाता है।

शंकराचार्य बनने की योग्यता 

भारत में शंकराचार्य के पद को वही व्यक्ति प्राप्त कर सकता है जो त्यागी ब्राह्मण हो, साथ ही जो ब्रम्हचर्य का पूर्ण रुप से पालन करता हो। इसके अलावा जो डंडी सन्यासी हो साथ ही उसे राजनीति से कोई भी मतलब ना हो। इसके अलावा उसे चतुर्वेद, वेदांत, संस्कृत और पुराण के बारे में अच्छी जानकारी हो।

शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठ कौन से हैं? (Shankaracharya Four Math)

शंकराचार्य जी के द्वारा जो चार मठ स्थापित किए गए थे उनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि उनकी स्थापना इसा पूर्व आठवीं शताब्दी के आसपास में की गई थी। वर्तमान के समय में भी चारों मठ पर अलग अलग व्यक्ति विराजमान है।

जिनके द्वारा हिंदू धर्म का बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार किया जा रहा है। जो भी व्यक्ति शंकराचार्य के पद पर होता है उसे अपने जिंदा रहते हुए ही अपने सबसे अच्छे और उचित शिष्य को मठ का उत्तराधिकारी बनाना होता है।

1: ज्योति र्मठ (Jyoti Math)

ज्योतिर्मठ के वर्तमान में शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी हैं। यह ज्योतिर मठ के 44 वे मठाधीश बने हुए हैं। ज्योतिर मठ का वेद अथर्ववेद है और इस मठ का महावाक्य अयमात्मा ब्रह्म’ है। यह मठ उत्तराखंड राज्य के बद्रीनाथ इलाके में मौजूद हैं।

यहां से जब कोई व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करता है अथवा संन्यास लेता है तो उसके नाम के पश्चात सागर, पर्वत, गिरी जैसा संप्रदाय विशेषण लग जाता है। ज्योतिर मठ के पहले मठाधीश का नाम आचार्य तोटक था।

2: श्रृंगेरी मठ (Sringeri Math)

श्रृंगेरी मठ दक्षिण भारत के चिकमंगलूर नाम की जगह पर मौजूद है। जो भी व्यक्ति यहां से दीक्षा प्राप्त करता है, दीक्षा प्राप्त करने के बाद उसके नाम के पीछे सरस्वती, भारती या फिर पूरी संप्रदाय जैसा नाम शामिल कर दिया जाता है जिससे यह पता चलता है कि व्यक्ति श्रृंगेरी मठ से दीक्षित हुआ है।

सबसे पहले इस मठ का मठाधीश बनने का सौभाग्य आचार्य सुरेश्वर जी को प्राप्त हुआ था जिनका पहले का नाम मंडन मिश्र था। श्रृंगेरी मठ का महावाक्य अहम् ब्रह्मास्मि है और इस मठ का वेद यजुर्वेद है। वर्तमान के समय में श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ हैं जो श्रृंगेरी मठ के 36वे मठाधीश बने हैं।

3: गोवर्धन मठ (Govardhan Math)

उड़ीसा राज्य के जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ मौजूद है। वर्तमान के समय में यहां के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज है, जो गोवर्धन मठ के 145 वे मठाधीश के पद पर विराजमान है।

इस जगह से जो भी व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करता है उसके नाम के बाद में आरण्य संप्रदाय का विशेषण लग जाता है। गोवर्धन मठ के पहले मठाधीश बनने का सौभाग्य आदि शंकराचार्य जी के पहले शिष्य पदमपाद को प्राप्त हुआ था। गोवर्धन मठ का महावाक्य प्रज्ञान ब्रह्म है और इस मठ का वेद ऋग्वेद है।

4: शारदा मठ (Sharda Math)

शारदा मठ गुजरात राज्य के द्वारका धाम में मौजूद हैं। यहां से दीक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्तियों के नाम के पश्चात तीर्थ और आश्रम जैसे संप्रदाय नाम का विशेषण लग जाता है। यहां के पहले मठाधीश पृथ्वीधर स्वामी जी थे।

पृथ्वी धर स्वामी जी भी आदि शंकराचार्य जी के चार शिष्यों में से एक थे। शारदा मठ का महावाक्य तत्वमासी है और शारदा मठ का वेद सामवेद है। आज के समय में यहां के शंकराचार्य के पद पर स्वामी स्वरूपानंद जी विराजमान है जोकि शारदा मठ के 79 वे मठाधीश हैं।

FAQ:

Q: देश में कितने शंकराचार्य हैं?

ANS: चार मठ के चार शंकराचार्य

Q: प्रथम शंकराचार्य कौन थे?

ANS: आदि शंकराचार्य

Q: शंकराचार्य का क्या नाम था?

ANS: शंकर उर्फ आदि शंकराचार्य

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